जितनी बेताबी से हम उनका इंतज़ार करते रहे उतनी ही गुस्ताखी से वो इनकार करते रहे फिर भी बैठे थे हम उनकी ही राह ताकते और वो बेवफा, हमें छोड़ किसी और के लिए श्रृंगार करते रहे
सुलझी सी थी ज़िन्दगी , उलझी तुझ बिन अब है हमराही के बिन भी अब ,चलने का क्या मतलब है खुशियाँ और गम बांटू भी तो किस से प्रमोद ..? एक मैं हूँ तन्हा सा यहाँ , और ऊपर बैठा मेरा रब है